पराकाष्टा प्रेम की कितनी गहरी रही,यह तुम को मालूम ना था...दौलत ने बाँधी तेरी आँखों पे इतनी
गहरी पट्टी,रुतबे की कुर्सी पड़े गी तुम को जब इतनी महंगी तो याद जरूर हम आए गे...दुआ से भर
कर तेरा आंगन,लौट कर अब क्यों आए गे...जीवन की राह तुझे दिखा दी,वक़्त की धारा भी तुझ को
समझा दी...जब समझ ना पाए पराकाष्ठा प्रेम की गहरी तो जीवन और वक़्त की धारा कहाँ समझ
पाओ गे..
गहरी पट्टी,रुतबे की कुर्सी पड़े गी तुम को जब इतनी महंगी तो याद जरूर हम आए गे...दुआ से भर
कर तेरा आंगन,लौट कर अब क्यों आए गे...जीवन की राह तुझे दिखा दी,वक़्त की धारा भी तुझ को
समझा दी...जब समझ ना पाए पराकाष्ठा प्रेम की गहरी तो जीवन और वक़्त की धारा कहाँ समझ
पाओ गे..