शामे तो रोज़ ही आए गी,पर अफ़सोस तेरी किसी शाम मे तेरे साथ हम नहीं आए गे..मसरूफ़ियत हो
या साथ तेरे कोई और हो,मुझे इस से क्या फर्क पड़ता है...तेरी शाम हसीं हो ना हो,अब मुझे क्या लेना
देना है...हमारी हसरतो का ज़नाज़ा जब उठ ही गया तो तेरी हसरतो से मुझे अब क्या करना है...दावा
इतना जरूर करते है,कुदरत अपने नायाब तोहफे धरती पे जयदा नहीं उतारा करती..बदकिस्मती तुम्हारी
है कि कोई राधा जन्म दुबारा नहीं लिया करती..
या साथ तेरे कोई और हो,मुझे इस से क्या फर्क पड़ता है...तेरी शाम हसीं हो ना हो,अब मुझे क्या लेना
देना है...हमारी हसरतो का ज़नाज़ा जब उठ ही गया तो तेरी हसरतो से मुझे अब क्या करना है...दावा
इतना जरूर करते है,कुदरत अपने नायाब तोहफे धरती पे जयदा नहीं उतारा करती..बदकिस्मती तुम्हारी
है कि कोई राधा जन्म दुबारा नहीं लिया करती..