Wednesday 13 November 2019

शामे तो रोज़ ही आए गी,पर अफ़सोस तेरी किसी शाम मे तेरे साथ हम नहीं आए गे..मसरूफ़ियत हो

या साथ तेरे कोई और हो,मुझे इस से क्या फर्क पड़ता है...तेरी शाम हसीं हो ना हो,अब मुझे क्या लेना

देना है...हमारी हसरतो का ज़नाज़ा जब उठ ही गया तो तेरी हसरतो से मुझे अब क्या करना है...दावा

इतना जरूर करते है,कुदरत अपने नायाब तोहफे धरती पे जयदा नहीं उतारा करती..बदकिस्मती तुम्हारी

है कि कोई राधा जन्म दुबारा नहीं लिया करती..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...