Saturday 30 November 2019

वो दूर तक जाने की ललक,मंज़िल को पा लेने की कसक..चलना है अब बेशक अकेले ही सही,मगर

मंज़िल की ख़्वाइश जरुरी है अभी..कोशिश करना,फिर गिरना फिर से गिरना..हिम्मत टूटने का पैमाना

तो नहीं..जाबांज है कोई मिट्टी का खिलौना तो नहीं...जो खुद से हासिल कर पाए तो जीत तेरी-मेरी ही

होगी,बेशक चलना है अकेले ही सही..तू साथ नहीं पर मेरी साँसों मे तो है..इतना ही काफी है तेरा नाम

मेरे नाम के साथ बाकी तो है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...