मिलावट कैसे कर पाते तेरे प्यार मे,जब इस मिलावटी दुनियाँ से ही बाहर निकल आए है..कण-कण मे
भर के इस प्यार को,तभी तो पास तेरे आ पाए है..दर्द की वो लहर,आँखों मे बरसती अधूरे सपनों की वो
अजनबी सी इक खबर..पढ़ कौन सकता,जब खुद से ही दूर रहे इतना..अनंत काल के इस शुद्ध-प्रेम का
मतलब यह दुनियाँ कहाँ समझ पाती है..जो खुद इतनी अशुद्ध है कि हर रोज़ किसी ना किसी पे ऊँगली
उठा देती है..शुद्ध प्रेम-गाथा का मतलब बताने ही,इस मिलावटी दुनियाँ से बाहर निकल आए है..
भर के इस प्यार को,तभी तो पास तेरे आ पाए है..दर्द की वो लहर,आँखों मे बरसती अधूरे सपनों की वो
अजनबी सी इक खबर..पढ़ कौन सकता,जब खुद से ही दूर रहे इतना..अनंत काल के इस शुद्ध-प्रेम का
मतलब यह दुनियाँ कहाँ समझ पाती है..जो खुद इतनी अशुद्ध है कि हर रोज़ किसी ना किसी पे ऊँगली
उठा देती है..शुद्ध प्रेम-गाथा का मतलब बताने ही,इस मिलावटी दुनियाँ से बाहर निकल आए है..