इबादत तेरी करे या मुहब्बत की..बात तो इबादत का अर्थ समझने की है..इबादत तुझ मे गरूर भर दे,तू
खुद को कही का राजा समझे..ऐसी इज़ाज़त नहीं देती मेरी इबादत..इबादत का इक रूप यह भी तो है..
तोड़ कर किसी कांच को हम ने उस के हज़ारों टुकड़े किए..हर टुकड़े को जोड़ा हर धर्म से,हर मजहब से..
साथ सब को मिलाना भी तो एक इबादत है..प्रेम और इबादत,दोनों ही कितने पावन है..अब हम अपनी
सरगोशियों को प्रेम ग्रन्थ से जय्दा ''महान प्रेम-ग्रन्थ'' बनाए गे..जहा प्रेम,मुहब्बत और प्यार सब ढले
गे इक ग्रन्थ के नीचे,समझ जिस की जितनी होगी,ग्रन्थ प्रेम को उतना ही समझ पाए गे...
खुद को कही का राजा समझे..ऐसी इज़ाज़त नहीं देती मेरी इबादत..इबादत का इक रूप यह भी तो है..
तोड़ कर किसी कांच को हम ने उस के हज़ारों टुकड़े किए..हर टुकड़े को जोड़ा हर धर्म से,हर मजहब से..
साथ सब को मिलाना भी तो एक इबादत है..प्रेम और इबादत,दोनों ही कितने पावन है..अब हम अपनी
सरगोशियों को प्रेम ग्रन्थ से जय्दा ''महान प्रेम-ग्रन्थ'' बनाए गे..जहा प्रेम,मुहब्बत और प्यार सब ढले
गे इक ग्रन्थ के नीचे,समझ जिस की जितनी होगी,ग्रन्थ प्रेम को उतना ही समझ पाए गे...