चल इस मुहब्बत को इबादत का रूप दे कर जुदा हो जाए...तू मसरूफ रह अपनी ज़िंदगी मे,हम खुद
मे लौट जाए..फिर से वही अजनबीपन हो और खुद की ज़िंदगी के रेले हो..मुहब्बत तुझे रास ना आई
मेरी,कभी लहज़ा तेरा बेरुखी का तो कभी प्यार का..प्यार कोई किताब नहीं,जिसे सिर्फ फुर्सत मे ही
पढ़ा जाए..प्यार को वक़्त ना दिया तो वो सूख जाता है,किसी बेजान परिंदे की तरह..चल आज से तू
तू है मैं मैं हू..बस ख़ुशी ख़ुशी जुदा हो जाए..
मे लौट जाए..फिर से वही अजनबीपन हो और खुद की ज़िंदगी के रेले हो..मुहब्बत तुझे रास ना आई
मेरी,कभी लहज़ा तेरा बेरुखी का तो कभी प्यार का..प्यार कोई किताब नहीं,जिसे सिर्फ फुर्सत मे ही
पढ़ा जाए..प्यार को वक़्त ना दिया तो वो सूख जाता है,किसी बेजान परिंदे की तरह..चल आज से तू
तू है मैं मैं हू..बस ख़ुशी ख़ुशी जुदा हो जाए..