राह मे रुकी कोई इमारत नहीं है हम...खामोश रहते है बहुत,मतलब इस का यह तो नहीं..जुबान-बंद
है हम..यह लब खुलते है सिर्फ दुआ बन कर..आँखों का यह आशियाना उठता है तुझे पनाह देने के लिए..
खुद को देख मेरी नज़रो से जरा,पलकों पे बिठाया है तेरी हर ख्वाईश को सुनहरे सपने की तरह..दिल
की धड़कन बेशक रूकती है तो रुक जाए,तेरे रुखसार पे कोई ऊँगली क्यों उठाए...मखमली पिटारे मे
रखते है तुझे संभाल के,नज़र किसी की ना लगे..काला टीका लगा देते है बचा के सब से..
है हम..यह लब खुलते है सिर्फ दुआ बन कर..आँखों का यह आशियाना उठता है तुझे पनाह देने के लिए..
खुद को देख मेरी नज़रो से जरा,पलकों पे बिठाया है तेरी हर ख्वाईश को सुनहरे सपने की तरह..दिल
की धड़कन बेशक रूकती है तो रुक जाए,तेरे रुखसार पे कोई ऊँगली क्यों उठाए...मखमली पिटारे मे
रखते है तुझे संभाल के,नज़र किसी की ना लगे..काला टीका लगा देते है बचा के सब से..