सहज सरल रहे और सदा धरा पे ही पाँव धरे,सामने यह ज़माना तारीफ करता रहा...सर पे भी बिठाता
रहा..ज़न्नत से सीधा उतरे है,इतना मान तक देता रहा..पर है तो ज़माना,इंसानो की यह बस्ती है..
खुद से जब खुद का साथ दिया,अपने आप से प्यार किया..शोहरत की बुलंदियों को हल्का सा जो
छूने लगे तो हम को हमारी कमियों का एहसास अब दिलाया गया..जो कभी लफ्ज़ो पे हमारे कायल
थे,आज यू हम को सीधा धरा पे गिराया..ज़माना क्या जाने,माँ-बाबा की दुआएं हम को अब गिरा नहीं
सकती...जो पहली सांस से धरा पे था वो अपनी आखिरी सांस तक धरा पे ही होगा...
रहा..ज़न्नत से सीधा उतरे है,इतना मान तक देता रहा..पर है तो ज़माना,इंसानो की यह बस्ती है..
खुद से जब खुद का साथ दिया,अपने आप से प्यार किया..शोहरत की बुलंदियों को हल्का सा जो
छूने लगे तो हम को हमारी कमियों का एहसास अब दिलाया गया..जो कभी लफ्ज़ो पे हमारे कायल
थे,आज यू हम को सीधा धरा पे गिराया..ज़माना क्या जाने,माँ-बाबा की दुआएं हम को अब गिरा नहीं
सकती...जो पहली सांस से धरा पे था वो अपनी आखिरी सांस तक धरा पे ही होगा...