शुद्ध प्रेम का नाता सूरत से कब होता है..सूरत अच्छी हो या बुरी,प्रेम सूरत से नहीं होता है...प्रेम तो वो
हस्ती है,जब होता है..होने के बहुत बाद सूरत को देखा करता है...रूह का सूंदर होना,मन का बेहद सूंदर
होना..सिर्फ यह दो हो तो प्रेम बहुत खूबसूरत हो जाता है..फिर यह नाता इक जन्म नहीं,अनंत काल तक
होता है..रूप बदल यह प्रेम,हर जन्म अलग रंग मे ढलता है..रूह को जब पहचाने रूह,इक दूजे मे बस
जाए रूह..इक है घायल तो दूजा भी घायल,प्रेम है ऐसा पावन पावन..
हस्ती है,जब होता है..होने के बहुत बाद सूरत को देखा करता है...रूह का सूंदर होना,मन का बेहद सूंदर
होना..सिर्फ यह दो हो तो प्रेम बहुत खूबसूरत हो जाता है..फिर यह नाता इक जन्म नहीं,अनंत काल तक
होता है..रूप बदल यह प्रेम,हर जन्म अलग रंग मे ढलता है..रूह को जब पहचाने रूह,इक दूजे मे बस
जाए रूह..इक है घायल तो दूजा भी घायल,प्रेम है ऐसा पावन पावन..