Sunday 10 November 2019

हमारे रूढ़िवाद समाज मे,प्रेम प्यार और मुहब्बत के शब्दों को हर कोई इतनी बेबाकी से नहीं लिख पाता..विडंबना की बात कि जहा राधा-कृष्णा,शिव-पार्वती के प्रेम की अलौकिक गाथाएं हम सदियों से पढ़ रहे है पर उन का वास्तविक स्वरूप कौन समझ पाया..हमारा समाज आज भी प्यार को,प्रेम को गलत और गन्दी नज़र से देखता है..प्यार प्रेम,बहुत पवित्र  शब्द है,अगर लोगो की सोच सही हो..वासना प्यार नहीं..हवस को जो प्यार कहने लगे वो प्यार नहीं..प्यार,प्रेम...एक शुद्ध प्रेम का वो रूप,जिस मे प्रेमिका पूरी शिद्दत से अपने प्रेमी को समर्पित होती है..प्रेम का वो स्वरूप जहा प्रेमी भी कृष्ण के रूप मे उस के समर्पण को स्वीकार करता है...प्रेम,प्यार का यह रूप विरले है,तभी तो समाज प्यार को समझ नहीं पाता..''मेरी सरगोशियां,प्रेम ग्रन्थ''शुद्ध प्रेम की वो गाथा पेश करती है,जो आज भी है,बेशक विरले ही सही...प्रेम के वास्तविक रूप को जानिए और इस शब्द को सम्मान दीजिये......आप की शायरा

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...