Wednesday 27 November 2019

मन जब निर्मल रहा सदा,इक रेत का कण भी क्यों बीच मे आया..वाणी रही सहज सरल,तूफान का

रुख क्यों अचनाक बीच मे आया..खामोश बहुत था आसमाँ,अचनाक बादलों ने क्यों उत्पात मचाया..

क्या यह लेखा-जोखा था तक़दीरो का या दर्द खुद ही खुद से चल कर आया..सब कुछ बदला,क्यों कर

बदला..शायद होता है कभी कभी,साफ़ महकती धारा मे मिल जाता है कीचड़ कभी कभी..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...