मन जब निर्मल रहा सदा,इक रेत का कण भी क्यों बीच मे आया..वाणी रही सहज सरल,तूफान का
रुख क्यों अचनाक बीच मे आया..खामोश बहुत था आसमाँ,अचनाक बादलों ने क्यों उत्पात मचाया..
क्या यह लेखा-जोखा था तक़दीरो का या दर्द खुद ही खुद से चल कर आया..सब कुछ बदला,क्यों कर
बदला..शायद होता है कभी कभी,साफ़ महकती धारा मे मिल जाता है कीचड़ कभी कभी..
रुख क्यों अचनाक बीच मे आया..खामोश बहुत था आसमाँ,अचनाक बादलों ने क्यों उत्पात मचाया..
क्या यह लेखा-जोखा था तक़दीरो का या दर्द खुद ही खुद से चल कर आया..सब कुछ बदला,क्यों कर
बदला..शायद होता है कभी कभी,साफ़ महकती धारा मे मिल जाता है कीचड़ कभी कभी..