आसमां को छूने की इक ज़िद है हमारी..टूटे या फूटे पहुंचे गे आखिर मंज़िल तक हमारी..ज़िद है गर
अपनी तो सहना भी बहुत कुछ होगा...सितारों से आगे जहां और भी है,यह भी मानना होगा..सहारो
की नहीं बस इक मसीहा साथ हमारे हो,गर्दिश मे हो तारे तो राह दिखाने वाला हो...नामुमकिन को
मुमकिन करना भी तो ज़िद होती है...फिर यह ज़िद आसमां को छूने की हो,तो कौन सी खता बोलो
हमारी है...
अपनी तो सहना भी बहुत कुछ होगा...सितारों से आगे जहां और भी है,यह भी मानना होगा..सहारो
की नहीं बस इक मसीहा साथ हमारे हो,गर्दिश मे हो तारे तो राह दिखाने वाला हो...नामुमकिन को
मुमकिन करना भी तो ज़िद होती है...फिर यह ज़िद आसमां को छूने की हो,तो कौन सी खता बोलो
हमारी है...