पटरी पे साथ साथ चलती है,मुकाम तक पहुँचाती भी सभी को है..सहन कर के इतना बोझ मंज़िल
तक ले जाती है...अफ़सोस मगर कभी आपस मे मिल ही नहीं पाती है..इश्क की कहानी भी कुछ
ऐसी ही है,पाक मुहब्बत को खो कर भी उस की सलामती की दुआ किया करती है...यह जानते हुए
भी कि वो उस की तक़दीर का हिस्सा भी नहीं...जो कुर्बान हो कर भी दुआ देती है,वो सिर्फ मुहब्बत
नहीं..दास्तानें-खुदा हुआ करती है...
तक ले जाती है...अफ़सोस मगर कभी आपस मे मिल ही नहीं पाती है..इश्क की कहानी भी कुछ
ऐसी ही है,पाक मुहब्बत को खो कर भी उस की सलामती की दुआ किया करती है...यह जानते हुए
भी कि वो उस की तक़दीर का हिस्सा भी नहीं...जो कुर्बान हो कर भी दुआ देती है,वो सिर्फ मुहब्बत
नहीं..दास्तानें-खुदा हुआ करती है...