दिल रूह जिस्म और जान..अक्सर करते है यह गुफ्तगू..इस जहां मे दिल सब एक से क्यों नहीं..
जिस्मो-जान से बंधे यह रिश्ते,रूह के आस पास क्यों नहीं..हकीकत क्यों समझ नहीं पाते,टुकड़ों मे
जीते जीते क्या थक नहीं जाते..यह जिस्मो जान तो खाक हो कर हवाओ मे गुम हो जाया करते है..
यह रूह ही है जो निकल कर जिस्मो से भी,गुफ्तगू जारी रखा करती है...
जिस्मो-जान से बंधे यह रिश्ते,रूह के आस पास क्यों नहीं..हकीकत क्यों समझ नहीं पाते,टुकड़ों मे
जीते जीते क्या थक नहीं जाते..यह जिस्मो जान तो खाक हो कर हवाओ मे गुम हो जाया करते है..
यह रूह ही है जो निकल कर जिस्मो से भी,गुफ्तगू जारी रखा करती है...