Tuesday 28 May 2019

पीछे मुड़ कर जो देखा,बहुत अँधेरा था..खौफ का वो सिलसिला,दहशतो मे सिमटा हुआ..सांसो को

जीने के लिए कुछ सांसे थी चाहिए...दम घुटा फिर इतना कि खुली हवा की तलाश मे खुद ही बाहर

आ गए..चांदनी से बेखबर उस के चाँद को निहारते रहे..चाँद बोला खौफ किस बात का,मुझे भी सांसे

चाहिए..बह गए दो बून्द आंसू,भूल कर उस खौफ को चाँद मे ही खो गए..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...