पीछे मुड़ कर जो देखा,बहुत अँधेरा था..खौफ का वो सिलसिला,दहशतो मे सिमटा हुआ..सांसो को
जीने के लिए कुछ सांसे थी चाहिए...दम घुटा फिर इतना कि खुली हवा की तलाश मे खुद ही बाहर
आ गए..चांदनी से बेखबर उस के चाँद को निहारते रहे..चाँद बोला खौफ किस बात का,मुझे भी सांसे
चाहिए..बह गए दो बून्द आंसू,भूल कर उस खौफ को चाँद मे ही खो गए..
जीने के लिए कुछ सांसे थी चाहिए...दम घुटा फिर इतना कि खुली हवा की तलाश मे खुद ही बाहर
आ गए..चांदनी से बेखबर उस के चाँद को निहारते रहे..चाँद बोला खौफ किस बात का,मुझे भी सांसे
चाहिए..बह गए दो बून्द आंसू,भूल कर उस खौफ को चाँद मे ही खो गए..