आ ज़िंदगी..आज मन है तेरे साथ खेल खेले..दुखो और गमो का..देखे तो,कितना हठ है तेरे मेरे
बीच...तू देती जा दुःख और गमो के रेले,आंसुओ के बीच भी मुस्कुराए गे तेरी ऐसी ज़िद के आगे...
देख चुकी ना मुझे दे के हज़ारो दुःख-दर्द...कभी कुछ छीना मुझ से,कभी दे दी जुदाई अपनों की...
क्या मिला तुझ को,यह सब दे कर...जिस ने थामा दामन उस मालिक का,उसे तू क्या हरा पाए गी..
जो जी लिया अपनी खुद्दारी मे,उस की सांसे भी छीने गी तो भी यह शख्सियत हंसती हुई इस जहाँ
से जाये गी ....
बीच...तू देती जा दुःख और गमो के रेले,आंसुओ के बीच भी मुस्कुराए गे तेरी ऐसी ज़िद के आगे...
देख चुकी ना मुझे दे के हज़ारो दुःख-दर्द...कभी कुछ छीना मुझ से,कभी दे दी जुदाई अपनों की...
क्या मिला तुझ को,यह सब दे कर...जिस ने थामा दामन उस मालिक का,उसे तू क्या हरा पाए गी..
जो जी लिया अपनी खुद्दारी मे,उस की सांसे भी छीने गी तो भी यह शख्सियत हंसती हुई इस जहाँ
से जाये गी ....