खामोशियो मे यू ना ग़ज़ल गुनगुनाया कीजिये..रस्मे-उल्फत का कुछ तो ख्याल कीजिये..इंतज़ार
करती है हमारी सरगोशियां,धीमे से गज़ले-रस्म अदा कीजिये..कही कोई और ना सुन ले,मेहमान-
नवाज़ी से जरा दूर रहा कीजिये..नज़दीकियां बढ़ाने के लिए ग़ज़ल का इक लफ्ज़ ही काफी है..हुस्न
कर रहा है सलाम,शहंशाह मेरे इश्क को कुछ तो नाम दीजिये...
करती है हमारी सरगोशियां,धीमे से गज़ले-रस्म अदा कीजिये..कही कोई और ना सुन ले,मेहमान-
नवाज़ी से जरा दूर रहा कीजिये..नज़दीकियां बढ़ाने के लिए ग़ज़ल का इक लफ्ज़ ही काफी है..हुस्न
कर रहा है सलाम,शहंशाह मेरे इश्क को कुछ तो नाम दीजिये...