किस्मत की लकीरो से समझौता कर चुके है...जो नहीं मिला,उस का गिला अब करना बंद कर चुके है..
मुट्ठी भर सपने जो देखे थे कभी,उन के टूटने का अफ़सोस भी करना भूल चुके है...जो आज है उसी को
अपना मान कर,ख़ुशी से जीना सीख चुके है...कभी यह आंखे जो बार बार बरस जाया करती थी,उन को
छिपाने की कला अब सीख गए है...बरसती तो आज भी है,मगर हौले हौले खुद मे सिमटना सीख चुके
है...
मुट्ठी भर सपने जो देखे थे कभी,उन के टूटने का अफ़सोस भी करना भूल चुके है...जो आज है उसी को
अपना मान कर,ख़ुशी से जीना सीख चुके है...कभी यह आंखे जो बार बार बरस जाया करती थी,उन को
छिपाने की कला अब सीख गए है...बरसती तो आज भी है,मगर हौले हौले खुद मे सिमटना सीख चुके
है...