Saturday 18 May 2019

किस्मत की लकीरो से समझौता कर चुके है...जो नहीं मिला,उस का गिला अब करना बंद कर चुके है..

मुट्ठी भर सपने जो देखे थे कभी,उन के टूटने का अफ़सोस भी करना भूल चुके है...जो आज है उसी को

अपना मान कर,ख़ुशी से जीना सीख चुके है...कभी यह आंखे जो बार बार बरस जाया करती थी,उन को

छिपाने की कला अब सीख गए है...बरसती तो आज भी है,मगर हौले हौले खुद मे सिमटना सीख चुके

है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...