अश्को के सागर मे नाम तेरा, भिगो कर जो पुकारा...दर्द तो जैसे हवा हो गया...फिर तो श्रृंगार किया
ऐसा कि इन लबों को जैसे मुस्कुराना ही आ गया...झंकार यह पायल की,तुम्हे आज सोने दे गी तब
ना...चूड़ियाँ जो खनके गी आज,चांदनी भी कहे गी चाँद से तू अब जरा छुप जा...बेपरवाही से जो
बिखरे गे यह घनेरे बादल,फिर ना कहना रिमझिम की यह बेला अब रुके गी कब तक...
ऐसा कि इन लबों को जैसे मुस्कुराना ही आ गया...झंकार यह पायल की,तुम्हे आज सोने दे गी तब
ना...चूड़ियाँ जो खनके गी आज,चांदनी भी कहे गी चाँद से तू अब जरा छुप जा...बेपरवाही से जो
बिखरे गे यह घनेरे बादल,फिर ना कहना रिमझिम की यह बेला अब रुके गी कब तक...