Saturday 25 May 2019

अश्को के सागर मे नाम तेरा, भिगो कर जो पुकारा...दर्द तो जैसे हवा हो गया...फिर तो श्रृंगार किया

ऐसा कि इन लबों को जैसे मुस्कुराना ही आ गया...झंकार यह पायल की,तुम्हे आज सोने दे गी तब

ना...चूड़ियाँ जो खनके गी आज,चांदनी भी कहे गी चाँद से तू अब जरा छुप जा...बेपरवाही से जो

बिखरे गे यह घनेरे बादल,फिर ना कहना रिमझिम की यह बेला अब रुके गी कब तक...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...