क्या कहे मदहोशियाँ शबाब पे है...बिन पिए नशे मे चूर किसी अनोखे खवाब मे है..बेवजह मुस्कुरा दे,
बेवजह गुनगुना दे..पाँव ज़मीं पे नहीं जैसे आसमाँ मे है..उड़ रहे है बिन पंखो के,क्यों बताए किस ख्याल
मे है..खत लिखते है किसी बेनाम को,लिख-लिख के मिटाते है हर लफ्ज़ को हर उस बेनाम को...खुद पे
इतराते है किसी शोखी से चूर,आईना पूछे सवाल यह बार-बार..शबाब तेरा तुझी को मदहोश कर जाए
गा..गुनगुना मत इतना कि यह आईना भी चूर-चूर हो जाए गा...
बेवजह गुनगुना दे..पाँव ज़मीं पे नहीं जैसे आसमाँ मे है..उड़ रहे है बिन पंखो के,क्यों बताए किस ख्याल
मे है..खत लिखते है किसी बेनाम को,लिख-लिख के मिटाते है हर लफ्ज़ को हर उस बेनाम को...खुद पे
इतराते है किसी शोखी से चूर,आईना पूछे सवाल यह बार-बार..शबाब तेरा तुझी को मदहोश कर जाए
गा..गुनगुना मत इतना कि यह आईना भी चूर-चूर हो जाए गा...