Sunday, 22 September 2019

वक़्त वक़्त की बात है,बहारे कभी साथ तेरे मेरे थी...आज दूरियों की मोहताज़ है..यह वक़्त क्या अजीब

शै है,कब किस का हुआ है...रुला कर कितना बार अंधेरो मे ले जाता है और दे के बेतहतशा ख़ुशी दिल

को झूमने पे मजबूर कर देता है...वादे पे वादे ना कर बस उतना ही कह,जितना मुनासिब तेरे लिए है..

सरल सा यह मन कहां समझ पाए गा..जो बेखबर है ज़माने से,सिर्फ तेरी कही हर बात ही समझ पाए गा 

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...