Sunday 29 September 2019

यादों के झरोखे से निकलने के लिए खुली हवा मे चले आए है...दर्द को सीने से बाहर करने के लिए फूलो

से मिलने बाग़ मे चले आए है...कशिश मुहब्बत की जीने नहीं देती,दिमाग की सोच इस को छोड़ने ही

नहीं देती...वो ढाई अक्षर प्यार के तूफ़ान मचा देते है..सहेज के रखे तो भी दिल थाम लेते है.. ''.मुहब्बत''

मुस्कुरा दिए किसी की याद मे..लौट चले है फिर वही,जहां ढाई अक्षर लिखे है हमारे प्यार के..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...