दुनियादारी मे उलझने की जगह, हम पन्नो की दुनियाँ मे चले आए..एहसास के धागों को समेटा
और खुली हवा मे चले आए...दिल के टूटने की आवाज़ खुद को भी ना आए,दिल को पत्थर बना
ग़ज़लें लिखते चले गए..तन्हाई से डरने की बजाय,दूजों की परेशानियां सुलझाते चले गए..खुश
रहने की ठान ली तो बेवजह खुश होते चले गए...महफ़िलो से दूर मगर अपनी ही दुनियाँ मे मस्त
खुद को ही प्यार करते चले गए...
और खुली हवा मे चले आए...दिल के टूटने की आवाज़ खुद को भी ना आए,दिल को पत्थर बना
ग़ज़लें लिखते चले गए..तन्हाई से डरने की बजाय,दूजों की परेशानियां सुलझाते चले गए..खुश
रहने की ठान ली तो बेवजह खुश होते चले गए...महफ़िलो से दूर मगर अपनी ही दुनियाँ मे मस्त
खुद को ही प्यार करते चले गए...