गीली मिट्टी की तरह रिश्तो मे ढलते रहे...खुद को भूल कर सब कुछ करते रहे..होश तो तब आया जब
हम बिलकुल अकेले हो गए...जान दे कर जिस्म की परतें उतार कर,ख़ुशियाँ देते रहे..दौलत का हर
टुकड़ा लुटा कर ख़ुशी ख़ुशी जीते रहे..आंख मे आंसू किसी के ना आए,यह सोच कर अकेले आंसू बहाते
रहे..सब किया जिन के लिए,वो दर्द पे दर्द देते रहे..रह गए उसी मिट्टी का बेजान खिलौना बन कर,जो
खुद ही सूख गया रिश्तो मे ढल ढल के...
हम बिलकुल अकेले हो गए...जान दे कर जिस्म की परतें उतार कर,ख़ुशियाँ देते रहे..दौलत का हर
टुकड़ा लुटा कर ख़ुशी ख़ुशी जीते रहे..आंख मे आंसू किसी के ना आए,यह सोच कर अकेले आंसू बहाते
रहे..सब किया जिन के लिए,वो दर्द पे दर्द देते रहे..रह गए उसी मिट्टी का बेजान खिलौना बन कर,जो
खुद ही सूख गया रिश्तो मे ढल ढल के...