Friday 27 September 2019

गीली मिट्टी की तरह रिश्तो मे ढलते रहे...खुद को भूल कर सब कुछ करते रहे..होश तो तब आया जब

हम बिलकुल अकेले हो गए...जान दे कर जिस्म की परतें उतार कर,ख़ुशियाँ देते रहे..दौलत का हर

टुकड़ा लुटा कर ख़ुशी ख़ुशी जीते रहे..आंख मे आंसू किसी के ना आए,यह सोच कर अकेले आंसू बहाते

रहे..सब किया जिन के लिए,वो दर्द पे दर्द देते रहे..रह गए उसी मिट्टी का बेजान खिलौना बन  कर,जो

खुद ही सूख गया रिश्तो मे ढल ढल के...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...