Thursday 12 May 2016

दरद से हलकान हो रही साॅसे यह मेरी..दम तोड दे गी कब  बिखरती हुई साॅसे मेरी--

इॅतजाऱ है आज भी उन तमाम लमहो का,जिस ने यह सजाई फूलो की तरह साॅसे मेरी--

कौन आया कौन चला गया,सब से बेखबर चल रही थी तब भी साॅसे यह मेरी--चुपके से

आजा फिर दुबारा जिॅदगी मे मेरी,महकने के लिए आज भी बची है चॅद साॅसे मेरी--

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...