कही एहसास टूटे..कही इस दिल के हजारो टुकडे हुए--रोए बहुत रोए..दुखो के बोझ से
कभी तडपे,कभी रातो को भी ना सोए--गुनाह कया इतने बडे थे कि इबादत के बाद...
पाक साफ कुरबानियो के बाद..बरी तो फिर भी नही थे--किया खुद की खामोशी ने तार
तार..आज आलम है यह कि बन चुके है बुत इक पतथर का..जिस मे ना अब साज है ना
किसी के आने की आवाज है--
कभी तडपे,कभी रातो को भी ना सोए--गुनाह कया इतने बडे थे कि इबादत के बाद...
पाक साफ कुरबानियो के बाद..बरी तो फिर भी नही थे--किया खुद की खामोशी ने तार
तार..आज आलम है यह कि बन चुके है बुत इक पतथर का..जिस मे ना अब साज है ना
किसी के आने की आवाज है--