Monday, 16 May 2016

मुददत बाद मिली है फुरसत,तुमहे यह बताने के लिए...वफाए-उलफत की राहो मे बॅधे

थे तुमहे सताने के लिए..दिल को यह शिकायत थी कि तुम किसी और के हो..नजऱो को

इनायत थी कि तुम गैरो के ना हो..कशमकश मे रहे बरसो यू ही बिखरे बिखरे..आज

जब लगे हो बिछुडने हम से तो यह ऱाज खोल रहे है तुमहे सब बताने के लिए...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...