Friday 4 March 2016

टूटे शीशे जैसी चुभन..तेरी जुदाई मे चली आई हैै--कितना भी मुसकुुरा ले..पर जानते हो

तुम..यह हॅसी भी तेरी फितरत से ही चुराई है--बोझ उठाए गे उन गमो का..जो विदाई

की घडी से साथ चले आए है--कयू है यकी इतना तेरे आने का..कि बार बार तेरी ही

तसवीर उभर कर सामने आई है---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...