हर तरफ है धुआॅ ही धुआॅ..किस को कहे यहा अपना--राख पे चलते चलते पाॅवो के निशाॅ
अकसर मिट जाते है..पर ठिकाना कही नही अपना--बारिश के मौसम ने जो कहर ढाया.
.कालिख की तपिश मे ढेेर हुआ आशियाना--अब ना तो है वो खुला आसमाॅॅ..ना वो
मौसम की नमी--रह गया है सिरफ अॅधेरा ही अॅधेरा--
अकसर मिट जाते है..पर ठिकाना कही नही अपना--बारिश के मौसम ने जो कहर ढाया.
.कालिख की तपिश मे ढेेर हुआ आशियाना--अब ना तो है वो खुला आसमाॅॅ..ना वो
मौसम की नमी--रह गया है सिरफ अॅधेरा ही अॅधेरा--