Monday 21 March 2016

हर तरफ है धुआॅ ही धुआॅ..किस को कहे यहा अपना--राख पे चलते चलते पाॅवो के निशाॅ

अकसर मिट जाते है..पर ठिकाना कही नही अपना--बारिश के मौसम ने जो कहर ढाया.

.कालिख की तपिश मे ढेेर हुआ आशियाना--अब ना तो है वो खुला आसमाॅॅ..ना वो

मौसम की नमी--रह गया है सिरफ अॅधेरा ही अॅधेरा--

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...