कलम जब जब भी चलती है..कागज केे इन पननो पे--हजारो दरदे बयाॅ कर जाती है--
लिखने का मकसद बेेशक कुछ ना हो..जबरन जजबातो को लफजो मे ढाल जाती हैै--
रॅजो गम की सयाही जो इस दिल पे छाई है..वो अकसर इन पननो को भिगो जाती है--
ना रहे गे जब हम इस दुनिया मे..इनही पननो की सयाही सब को खून के आॅसू रूला
जाए गी---
लिखने का मकसद बेेशक कुछ ना हो..जबरन जजबातो को लफजो मे ढाल जाती हैै--
रॅजो गम की सयाही जो इस दिल पे छाई है..वो अकसर इन पननो को भिगो जाती है--
ना रहे गे जब हम इस दुनिया मे..इनही पननो की सयाही सब को खून के आॅसू रूला
जाए गी---