Sunday 24 June 2018

सब कुछ छोड़ कर,बहुत दूर निकल आए है...इतनी दूर कि खामोशिया भी सुन नहीं पाती मेरे लफ्ज़ो

के बयान...हवाएं अक्सर थम सी जाती है मुझे सुनने के लिए...फिजाएं अपना रास्ता भूल जाती है

मुझ से कुछ अल्फाज़ो का साथ पाने के लिए ...दिल के जज्बातो को कितनी बार तोडा और मरोड़ा

गया...साँसों को हवा देने से भी रोका गया...फिर तुम सब   पे यकीं कैसे करे...अब तो इतनी दूर निकल

आए है कि खुद की आवाज़ को भी भूले से सुन लेते है....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...