Thursday 14 June 2018

 ऐसा चेहरा जो मासूम था किसी फूल की तरह....नहीं था काजल आँखों मे,फिर भी सुरमई जादू था

किसी को खुद की तरफ खींच लेने के लिए....पलके झुकी ऐसा लगा दिन कैसे रात मे यू ढल गया ...

जुल्फे खुली तो शामियाना बादलों का जैसे बन गया....कैसे छुए हिम्मत नहीं सादगी का रूप है...

सर झुका बस सज़दा किया,नज़र उतार दी दूर से और अदब से उस मालिक को शुक्रिया कहा....



दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...