कलम से कहा जरा रुक जा कि तेरे लफ्ज़ो के बहुत चर्चे है....बेबाक बात ना कह कि चारो तरफ तीखी
निगाहो के बहुत पहरे है....चुन चुन के हर लफ्ज़ क्यों परखा जाता है....स्याही कम है या फिर जयदा
इतना तक ख्याल रखा जाता है...कही टूटे ना कलम,काला टीका लगा कर इन कागज़ो पे उतारते है...
ज़माना बहुत शातिर है,इस का कमाल कहाँ यह जानते है....बहुत अदब से पेश आते है इस शाही कलम से,
की दुनिया के खूबसूरत रंगो से यह हम को मिलवाती है...
निगाहो के बहुत पहरे है....चुन चुन के हर लफ्ज़ क्यों परखा जाता है....स्याही कम है या फिर जयदा
इतना तक ख्याल रखा जाता है...कही टूटे ना कलम,काला टीका लगा कर इन कागज़ो पे उतारते है...
ज़माना बहुत शातिर है,इस का कमाल कहाँ यह जानते है....बहुत अदब से पेश आते है इस शाही कलम से,
की दुनिया के खूबसूरत रंगो से यह हम को मिलवाती है...