Wednesday 13 June 2018

एक छोटी सी ग़लतफ़हमी और रिश्ता धुआँ धुआँ हो गया....आखिरी बार सलामी दे कर,खुद से जुदा

कर दिया...उसूलो की ईमारत भरभरा कर ऐसे गिरी कि लफ्ज़ो पे जैसे खामोशियो का ताला लग गया...

राहे तो कभी मिल सकती ही नहीं,मगर राहों का रुख आखिर खतम सा हो गया...आहे-बगाहे दूर ही

रहते है इन बेगानी राहों से,खुद की छोटी सी दुनिया मे मशगूल रहते है सब से बच के.....फिर भी कही

दगा दे जाती है खुद के उसूलो  की बनाई यह ईमारत,धुआँ धुआँ होते होते बह गई सारी दौलत...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...