Monday 11 June 2018

मीलो दूर से चल कर आए वो मेरे घर का पता ढूंढने के लिए....मै कौन हूँ,कैसी हूँ..इस बात की खबर

जांचने के लिए ...दूर रह कर जान नहीं पाया,कैसी दिखती हो इस अहसास को महसूस शायद कर ही

नहीं पाया...प्यार की गहराई कितनी तुम मे है,एहसासों का ख्याल कितना मेरी तरह तुम को भी है ....

बोझ अपने दिलो-दिमाग से निकालने मेरे शहर तक आए है...बदनसीबी आप की,खामो-ख्याली अजी

आप की,दिल मे बसी है सिर्फ मेरे मेहबूब की मूरत...खुद की ज़िंदगी को सवारने कोई और घर ढूंढिए ...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...