मेरी सलामती चाहने के लिए,उस के पास कोई वजह ना थी...इकरार के धागो को बांधने के लिए,कोई
मजबूत डोरी साथ ना थी....शब्दों को जानने के लिए,दिल मे दूर दूर तक कोई जगह ही ना थी....कही
दूर आसमां तक परिंदो के उड़ जाने की कोई खबर ना थी....वो पत्थर दिल रहा या बेजान कोई पुतला
कि मेरी भावनाओ की कोई उस को कद्र ना थी...अक्सर पूछ लेते है मेरे मालिक,इस को दुनिया मे
भेजने की क्या कोई और वजह भी थी....
मजबूत डोरी साथ ना थी....शब्दों को जानने के लिए,दिल मे दूर दूर तक कोई जगह ही ना थी....कही
दूर आसमां तक परिंदो के उड़ जाने की कोई खबर ना थी....वो पत्थर दिल रहा या बेजान कोई पुतला
कि मेरी भावनाओ की कोई उस को कद्र ना थी...अक्सर पूछ लेते है मेरे मालिक,इस को दुनिया मे
भेजने की क्या कोई और वजह भी थी....