शिकस्त क्या दो गे कि खुद ही तुझ पे मर बैठे है...होश मे लाओ गे कैसे कि तुझे देख खुद ही होश उड़ा
बैठे है...माज़रा क्या है इस को समझने के लिए,क्या रातो की नींद गवाना चाहो गे...चाँद तो चाँद है
निहारो गे उसे तो यक़ीनन चांदनी को रुसवा कर बैठो गे...मेरे सवालो की उलझनों मे खुद को ही भूल
जाओ गे....जानना चाहो गे मुझे या ज़िंदगी भर बेबसी और आहों मे डूब जाओ गे....
बैठे है...माज़रा क्या है इस को समझने के लिए,क्या रातो की नींद गवाना चाहो गे...चाँद तो चाँद है
निहारो गे उसे तो यक़ीनन चांदनी को रुसवा कर बैठो गे...मेरे सवालो की उलझनों मे खुद को ही भूल
जाओ गे....जानना चाहो गे मुझे या ज़िंदगी भर बेबसी और आहों मे डूब जाओ गे....