Wednesday, 20 June 2018

बहुत ही ख़ामोशी से उस ने अपनी ख्वाईशो का जिक्र किया हम से....कही कोई और ना सुन ले,परदे मे

ही रहने का इकरार किया  हम से ....एक एक  ख्वाईश जैसे बरसो पुरानी थी,जुबाँ मे जैसे लरजती हुई 

कोई कहानी थी...यू लगा जैसे रिश्ता सदियों का था,जिक्र ख्वाईशो का भी जाना जाना सा था....अश्क

थे कि बहते रहे सैलाब की तरह,वो रोते रहे किसी तड़पती रूह की तरह...गले लगे तो अलग हो नहीं पाए

लब थरथराए और जवाबो का हिसाब ले गए हम से....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...