बहुत ही ख़ामोशी से उस ने अपनी ख्वाईशो का जिक्र किया हम से....कही कोई और ना सुन ले,परदे मे
ही रहने का इकरार किया हम से ....एक एक ख्वाईश जैसे बरसो पुरानी थी,जुबाँ मे जैसे लरजती हुई
कोई कहानी थी...यू लगा जैसे रिश्ता सदियों का था,जिक्र ख्वाईशो का भी जाना जाना सा था....अश्क
थे कि बहते रहे सैलाब की तरह,वो रोते रहे किसी तड़पती रूह की तरह...गले लगे तो अलग हो नहीं पाए
लब थरथराए और जवाबो का हिसाब ले गए हम से....
ही रहने का इकरार किया हम से ....एक एक ख्वाईश जैसे बरसो पुरानी थी,जुबाँ मे जैसे लरजती हुई
कोई कहानी थी...यू लगा जैसे रिश्ता सदियों का था,जिक्र ख्वाईशो का भी जाना जाना सा था....अश्क
थे कि बहते रहे सैलाब की तरह,वो रोते रहे किसी तड़पती रूह की तरह...गले लगे तो अलग हो नहीं पाए
लब थरथराए और जवाबो का हिसाब ले गए हम से....