सिरफ दो वकत की रोटी का जुगाड भी ना था,तब भी साथ थे..
अपनी छत भी ना थी,तब भी साथ थे..औलाद का सुख भी ना था,तब भी साथ थे..
आज रोटी है,मकान है,औलाद है..तब भी साथ है...
पर कया आज ऐसी मुहबबत है..कया इन सब के बगैऱ रिशतेे टिक पाए गे .
अपनी छत भी ना थी,तब भी साथ थे..औलाद का सुख भी ना था,तब भी साथ थे..
आज रोटी है,मकान है,औलाद है..तब भी साथ है...
पर कया आज ऐसी मुहबबत है..कया इन सब के बगैऱ रिशतेे टिक पाए गे .