Friday 6 June 2014

सिरफ दो वकत की रोटी का जुगाड भी ना था,तब भी साथ थे..

अपनी छत भी ना थी,तब भी साथ थे..औलाद का सुख भी ना था,तब भी साथ थे..

आज रोटी है,मकान है,औलाद है..तब भी साथ है...

पर कया आज ऐसी मुहबबत है..कया इन सब के बगैऱ रिशतेे टिक पाए गे .

       


दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...