Tuesday 10 June 2014

फिऱ सुबह आई है..रात के अधेँरे को विदा कर के आई है..

कोयल की कूक सजा रही है इस नए सवेरे को...

देखो जगा रही है नींद मे सोने वालो को..

कौन इस कूक से जाग पाए गा,या सुुबह की नियामतो को हासिल कर पाए गा....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...