Friday 6 June 2014

टुकडों मे बँट रही है जिनदगी..सुबह शाम की तरह,कही धूप कही छाँव बन रही है...

जिनदगी..रिशतों का मोल नही रहा यहा,कोई मिट रहा है तो कोई  मिटा रहा है....

 जिनदगी को यहाँ..बस  मायने बदल गए है यहाँ......

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...