वो फूलों का महकना और खिल के बहकना...दोनों ही भा गए..हाथ से क्यों छूना इन को कि यह तो
दूर से ही अपनी चमक बरसा गए...ओस की चंद बूंदे इन्हे और खूबसूरत कर गई...निहारना और खूब
निहारना और इन की खुशबू को महसूस करना...कही यह हमारा पागलपन तो नहीं...गज़ब पे गज़ब,
सीख रहे है हम भी इन से महकना और खूब महकना....शायद ज़िंदगी इसी का उजला सा नाम है...
दूर से ही अपनी चमक बरसा गए...ओस की चंद बूंदे इन्हे और खूबसूरत कर गई...निहारना और खूब
निहारना और इन की खुशबू को महसूस करना...कही यह हमारा पागलपन तो नहीं...गज़ब पे गज़ब,
सीख रहे है हम भी इन से महकना और खूब महकना....शायद ज़िंदगी इसी का उजला सा नाम है...