कभी कभी यू लगता था हमे,परिभाषा प्रेम की लिखने मे हम काबिल है...कितनी किताबे पढ़ी,ना जाने
कितनी प्रेम-कहानियों को पढ़ डाला..फिर राधा-कृष्णा की परिशुद्ध-प्रेम लीला के कायल हुए और प्रेम
को कितने ही रंगो मे उतार दिया..उतारते उतारते इन शब्दों को,इन मे इतना डूबे कि भूल गए यह तो
कलयुग है..यहाँ पवित्र-प्रेम कही नहीं होगा..आज जो प्रेम का इतना पवित्र-रूप देखा तो राधा-कृष्णा को
जैसे देख लिया..अश्रु-धारा है जो रूकती नहीं..कलयुग मे देख इस प्रेम को,नतमस्तक होने से रूह तो
जैसे रूकती ही नहीं...
कितनी प्रेम-कहानियों को पढ़ डाला..फिर राधा-कृष्णा की परिशुद्ध-प्रेम लीला के कायल हुए और प्रेम
को कितने ही रंगो मे उतार दिया..उतारते उतारते इन शब्दों को,इन मे इतना डूबे कि भूल गए यह तो
कलयुग है..यहाँ पवित्र-प्रेम कही नहीं होगा..आज जो प्रेम का इतना पवित्र-रूप देखा तो राधा-कृष्णा को
जैसे देख लिया..अश्रु-धारा है जो रूकती नहीं..कलयुग मे देख इस प्रेम को,नतमस्तक होने से रूह तो
जैसे रूकती ही नहीं...