Tuesday, 14 July 2020

सुबह सुबह ना रही..शाम शाम ना रही..मगर यह ज़िंदगी फिर भी चलती ही रही..बदले गे यह ज़िंदगी

फिर जल्द ही,यह सोच यह साँसे सांस लेती ही रही..आगे का मंज़र क्या होगा,कैसे कह दे..अपने ही

हाथ की लक़ीरों को जब जान ना पाए तो आगे का माहोल कैसा होगा कैसे जाने गे...परवरदिगार का

हर फैसला जब उस की मरज़ी से होता आया है तो कैसे उस की कोई बात ठुकरा दे...जो जैसा है वो

भी उस की रज़ा तो अपनी कौन सी रज़ा अब उस से मनवा ले....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...