सुबह सुबह ना रही..शाम शाम ना रही..मगर यह ज़िंदगी फिर भी चलती ही रही..बदले गे यह ज़िंदगी
फिर जल्द ही,यह सोच यह साँसे सांस लेती ही रही..आगे का मंज़र क्या होगा,कैसे कह दे..अपने ही
हाथ की लक़ीरों को जब जान ना पाए तो आगे का माहोल कैसा होगा कैसे जाने गे...परवरदिगार का
हर फैसला जब उस की मरज़ी से होता आया है तो कैसे उस की कोई बात ठुकरा दे...जो जैसा है वो
भी उस की रज़ा तो अपनी कौन सी रज़ा अब उस से मनवा ले....
फिर जल्द ही,यह सोच यह साँसे सांस लेती ही रही..आगे का मंज़र क्या होगा,कैसे कह दे..अपने ही
हाथ की लक़ीरों को जब जान ना पाए तो आगे का माहोल कैसा होगा कैसे जाने गे...परवरदिगार का
हर फैसला जब उस की मरज़ी से होता आया है तो कैसे उस की कोई बात ठुकरा दे...जो जैसा है वो
भी उस की रज़ा तो अपनी कौन सी रज़ा अब उस से मनवा ले....