अनगिनत शब्द प्यार के उतारे इन्ही पन्नो पे...हर पन्ना था जैसे प्यार के अथाह सागर मे डूबा हुआ..
कभी प्यार उतारा दर्द और विरह के शब्दों मे...कभी मिलन और समर्पण को पूजा के धागों मे पिरोया
इतना...वो समर्पण जो पूजा की थाली की कसम का गवाह था...बहुत लिखा,फिर भी लगा बहुत कम
ही लिखा...शायद इन दोनों रूहों ने सारे लिखे शब्दों को,प्यार को किसी सीमा मे बांधने से इंकार कर
दिया...यक़ीनन,पाक-मुहब्बत की कोई सीमा नहीं होती..लगता है,आज अभी से प्यार को और भी
जयदा लिखने की जरुरत होगी...
कभी प्यार उतारा दर्द और विरह के शब्दों मे...कभी मिलन और समर्पण को पूजा के धागों मे पिरोया
इतना...वो समर्पण जो पूजा की थाली की कसम का गवाह था...बहुत लिखा,फिर भी लगा बहुत कम
ही लिखा...शायद इन दोनों रूहों ने सारे लिखे शब्दों को,प्यार को किसी सीमा मे बांधने से इंकार कर
दिया...यक़ीनन,पाक-मुहब्बत की कोई सीमा नहीं होती..लगता है,आज अभी से प्यार को और भी
जयदा लिखने की जरुरत होगी...