Monday 13 July 2020

हम लिखते रहे अपनी ''सरगोशियां'' मे,परिशुद्ध प्रेम की बेमिसाल परिभाषा...कभी भरे अश्क तो कभी

प्रेम को नदिया की तरह बहा दिया...कभी इबादत की पाके-इश्क की तो कभी पूजा की थाली मे सज़ा

दिया...कभी बचाया दुनियाँ की नज़रो से तो कभी काला टीका लगा दिया...हम इम्तिहान की घड़ी को

तलाशते रहे और कही दूर किसी पाक-मुहब्बत ने साथ-साथ दम तोड़ दिया...यह कौन सा रिश्ता रहा,

जो मिट कर भी दुनियाँ को पाके-इश्क का मतलब समझा गया....बहुत कुछ सिखा गया...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...