Saturday 18 July 2020

वो छोटा सा घर,जिस की दीवारें सच्ची थी..
वो नन्हा सा घर,जहां खुशियां बसती थी..
वो खुशियां,जिन की कीमत बेहिसाब थी....
कीमत उस घर की थोड़ी सी थी,मगर....
उस की कीमत चुकाने की किसी की हस्ती ना थी...
वो मिटटी का चूल्हा,माँ जिस पे पसीने से तरबतर...
सुगांधित खाना बनाती थी...
वो दाल-रोटी,जो आज भी मुझ से बन नहीं पाती...
हज़ारो साधन है मगर,वो पेट आज भी भर नहीं पाती...
साल गुजर गए,पर वो सब याद आज अभी भी है...
जो सुख-ख़ुशी उस माटी मे थी,आज पक्के मकान मे कहां है...
सब बिखर गया,पर माटी की वो सौंधी खुशबू आज भी इस देह मे बसती है.........



दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...