लिखने लगते है अब प्यार को इन पन्नो पे तो आँखों के सामने वो दो पाक-रूहे आ जाती है..भूल ही गए
कि हम इस कलयुग मे रहते है...भूल ही गए कि हम कुछ लिखते भी है..अब तो यू लगता है,हम सिर्फ
स्याही ही बिखेर रहे थे इन पन्नो पे..असल प्रेम को देखा तो आंखे बार-बार भरती है..अब इस कलयुग मे
जीने का डर सताता नहीं..गूढ़ प्रेम को और गहरा और गहरा लिखे,इस ख्याल से यह कलम अब उठाते
है...अब इन पन्नो को सज़ाए गे एक बार फिर,प्यार की उस लो से जो इन आँखों मे बस सी गई है...
कि हम इस कलयुग मे रहते है...भूल ही गए कि हम कुछ लिखते भी है..अब तो यू लगता है,हम सिर्फ
स्याही ही बिखेर रहे थे इन पन्नो पे..असल प्रेम को देखा तो आंखे बार-बार भरती है..अब इस कलयुग मे
जीने का डर सताता नहीं..गूढ़ प्रेम को और गहरा और गहरा लिखे,इस ख्याल से यह कलम अब उठाते
है...अब इन पन्नो को सज़ाए गे एक बार फिर,प्यार की उस लो से जो इन आँखों मे बस सी गई है...