Tuesday 31 July 2018

इतने लफ्ज़ो की मालिक हो कर कितने दिलो पे राज़ करती हो....कभी आंसू ,कभी आहे..फिर कभी

मुहब्बत का जाल बुनती हो....बेवजह दिलो को धड़का कर,क्यों नींद उन की उड़ाया करती हो...खींच

कर झटके से,ना जाने कितनो को रोने पे भी मज़बूर करती हो...बेसाख्ता हंसी के खास लम्हे दे कर

बहुतो को जश्ने-मुहब्बत बांटा करती हो...तुम कलम हो मेरी या कोई जादू की छड़ी,लफ्ज़ो को सीने

मे अंदर तक उतार जाती हो.... 

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...