Sunday 8 July 2018

बारिश की हलकी हलकी बूंदे रेत मे समा जाती है...ना जाने कितनी तपिश है उस रेत मे,जो हज़ारो

बूंदो को खुद मे जज्ब कर जाती है...धूप की किरणों से यह रेत,फिर उजली हो जाती है...लगता है

जैसे वो खुद को खुद मे निखार लाती है...इसी रेत को हाथो मे लिए,खुद की ज़िंदगी पे नज़र करते

है....हज़ारो दुखो को खुद मे जज्ब कर के, हर जगह खुल के हसते है....ज़माना रश्क करता है हमारी

किस्मत पे,और एक हम है कि अकेले मे हर सैलाब इन्ही आँखों से बहा जाते है.....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...